Monday 28 October 2013

सूक्त - 148

[ऋषि- पृथुवैन्य । देवता- इब्द्र । छन्द- त्रिष्टुप ।]

10364
सुष्वाणास इन्द्र स्तुमसि त्वा ससवांसश्च तुविनृम्ण वाजम् ।
आ नो भर सुवितं यस्य चाकन्त्मना तना सनुयाम त्वोता: ॥1॥

सोम अन्न समिधा अर्पित है स्वीकार करो विनती करते हैं ।
धन  और  धान  हमें  भी  दो  प्रभु  यही प्रार्थना हम करते हैं ॥1॥

10365
ऋष्वस्त्वमिन्द्र    शूर  जातो  दासीर्विशः  सूर्येण   सह्याः ।
गुहा  हितं  गुह्यं  गूळहमप्सु  बिभृमसि  प्रस्त्रवणे  न सोमम् ॥2॥

हे  प्रभु  रक्षा  करो  हमारी  खल  असुरों  का  संहार  करो ।
दुष्ट   जहॉ   भी   छिपे   हुए   हों   उनका   भी   उध्दार  करो ॥2॥ 

10366
अर्यो  वा  गिरो अभ्यर्च  विद्वानृषीणां  विप्रः  सुमतिं  चकानः ।
ते  स्याम  ये    रणयन्त  सोमैरेनोत  तुभ्यं  रथोळह  भक्षैः ॥3॥

हम  हैं  प्रभु आत्मीय  तुम्हारे  सुन्दर  स्तोत्र  करो  स्वीकार ।
हविष्यान्न सब ग्रहण करो प्रभु सत-गुण के हो तुम आगार॥3॥

10367
इमा  ब्रह्मेन्द्र  तुभ्यं  शंसि   दा  नृभ्यो  नृणां  शूरः  शवः ।
तेभिर्भव  सक्रतुर्येषु  चाकन्नुत  त्रायस्व  गृणत उत स्तीन् ॥4॥

जो सज्जन हैं ऐसे मनुष्य को धीर- वीर बलवान बनाओ ।
तुमसे जो श्रध्दा  करते हैं  उनकी रक्षा  का  वचन निभाओ ॥4॥

10368
श्रुधी   हवमिन्द्र   शूर   पृथ्या   उत   स्तवसे   वेन्यस्यार्कैः ।
आ यस्ते योनिं घृतवन्तमस्वारूर्मिर्न निम्नैर्द्रवयन्त वक्वा:॥5॥

हे  भगवन  हे  इन्द्र- देव  हम  अनुष्ठान - अर्चन   करते   हैं ।
स्तुति  के साथ इन्हें स्वीकारो जो तुमसे प्रेम-भाव रखते हैं ॥5॥ 

1 comment:

  1. यज्ञ प्राप्ति के बीच सधा, यह मानव जीवन।

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