Thursday 16 January 2014

सूक्त - 59

[ऋषि- गौपायन । देवता- द्यावा-पृथिवी । छन्द- त्रिष्टुप-पंक्ति ।]

9384
प्र  तार्यायुः  प्रतरं  नवीयः  स्थातारेव  क्रतुमता  रथस्य ।
अश्व च्यवान उत्तवीत्यर्थं परातरं सु निरृतिर्जिहीताम्॥1॥

सही  सारथी  यदि मिल  जाए यात्रा हो जाती है सुखकर ।
मानव  दीर्घ आयु  पाता  है मृत्यु दूर जाती है द्रुततर॥1॥

9385
सामन्नु  राये  निधिमन्न्वन्नं  करामहे  सु  पुरुध  श्रवांसि ।
ता नो विश्वानि जरिता ममत्तु परातरं सु निरृतिर्जिहीताम्॥2॥

हम उत्तम धन की प्राप्ति-हेतु उपक्रम दिन-रात किया करते हैं।
साम - गान के सँग-सँग सबको हवि-भाग दिया करते हैं ॥2॥

9386
अभी   ष्व1र्यः  पौंस्यैर्भवेम   द्यौर्न   भूमिं   गिरयो   नाज्रान् ।
ता नो विश्वानि जरिता चिकेत परातरं सु निरृतिर्जिहीताम्॥3॥

आदित्य - देव - आलोक - प्रदाता  हवा  निरन्तर  बहती  है ।
हम  आत्मा  का परिचय पा लें जिससे मृत्यु दूर रहती  है ॥3॥

9387
मो षु णः सोम मृत्यवे परा दा: पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम् ।
द्युभिर्हितो जरिमा सू नो अस्तु परातरं सु निरृतिर्जिहीताम्॥4॥

प्रभु  हम  प्रतिदिन  सूरज  देखें  बुढापा  भी सुखकर हो जाए ।
जीवन  में  लालित्य  सदा  हो  मृत्यु  देर  से  ही अपनाए ॥4॥

9388
असुनीते  मनो  अस्मासु धारय जीवातवे सु प्र तिरा न आयुः ।
रारन्धि  नः सूर्यस्य  सन्दृशि  घृतेन  त्वं  तन्वं वर्धयस्य ॥5॥

दीर्घ  आयु  हमको  देना  प्रभु  ध्यान  सदा  तुम  मेरा  रखना ।
मुझे  सुरक्षा  देना  भगवन  तन - मन  परिपोषित करना ॥5॥

9389
असुनीते  पुनरस्मासु  चक्षुः  पुनः  प्राणमिह  नो धेहि भोगम् ।
ज्योक्  पश्येम  सूर्यमुच्चरन्तमनुमते  मृळया  नःस्वस्ति॥6॥

पुनः  प्राण  ऊर्जा  दो  प्रभुवर  नेत्र - ज्योति  मेरी  बढ  जाए ।
सदा सुरक्षित रहे मनुज यदि वह आत्मा का परिचय पाए॥6॥

9390
पुनर्नो   असुं   पृथिवी   ददातु   पुनर्द्यौर्देवी   पुनरन्तरिक्षम् ।
पुनर्नः  सोमस्तन्वं  ददातु  पुनः  पूषा पथ्यां3 या स्वस्तिः॥7॥

पुनर्नवा  प्रभु  हमें  बना  दो  तन  मन  आत्म  ब्रह्म बल देना ।
हे  सोम  समर्थ बना दो तुम आत्मीय समझ अपना लेना॥7॥

9391
शं रोदसी सुबन्धवे यह्वी ऋतस्य मातरा ।
भरतामप यद्रपो द्यौः पृथिवि क्षमा रपो मो षु ते किं चनाममत्॥॥8॥

परमेश्वर  सबका  अपना  है  वह  ही  तो  है  पिता  हमारा ।
दोष-शोक वह हर लेता है प्रभु ही पालक पोषक प्यारा ॥8॥

9392
अव द्वके अव त्रिका दिवश्चरन्ति भेषजा।क्षमा चरिष्ण्वेककं भरतामप
यद्रपो  द्यौः  पृथिवि  क्षमा  रपो  मो  षु  ते  किं  चनाममत् ॥9॥

क्षमा  स्वरूप  धरा  जननी  है  दोषों  को  सदा  क्षमा करती है ।
भूल से यदि कोई भूल हो जाए अपनाती है अपनी लगती है॥9॥

9393
समिन्द्रेरय गामनड्वाहं य आवहदुशीनराण्या अनः। भरतामप
यद्रपो  द्यौः  पृथिवि  क्षमा  रपो  मो  षु  ते किं चनाममत् ॥10॥

सूर्य - रश्मियॉ  औषधियॉ  हैं  सञ्जीवनी  बनकर  आती  हैं ।
प्रतिदिन हमको नव-जीवन देकर अद्भुत ऊर्जा से नहलाती हैं॥10॥
        
  




 

2 comments:

  1. नश्वरता की परिकल्पना मन में रख जीवन जीने का उपक्रम।

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  2. सूर्य - रश्मियॉ औषधियॉ हैं सञ्जीवनी बनकर आती हैं ।
    प्रतिदिन हमको नव-जीवन देकर अद्भुत ऊर्जा से नहलाती हैं॥10॥

    सूर्य की रश्मियों का पान करना चाहिए...






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