Friday 27 February 2015

मन का दिया जलाए रखना

बीना  छोटी  सी  बच्ची  है  पर  बीना  है  प्यार  की  मारी 
अपमानित  होती  है  घर  में  पर  बीना  है कितनी प्यारी ।

बोल  नहीं  सकती  है  बीना  पर  पढने  का  शौक  बहुत है
पेन्सिल को कागज़ पर घिसती चित्र बनाती वह अद्भुत है ।

धीरे - धीरे  उस  बच्ची  ने  बिल्ली की एक तस्वीर बनाई
फिर चिडिया फिर चूहा  मोर  सब पर अपना हाथ चलाई ।

एक दिन बीना गाय बनाई फिर बन गया गाय का बछडा
सिखलाती थी अब  मॉ  बोल पर बडा ढीठ था वह बछडा ।

पर बीना भी तो ज़िद्दी थी मॉ बोल यही था उसका कहना
फिर भी बछडा चुप ही था पर बीना को आ गया बोलना ।

मॉ - मॉ  कहती  पल्ला - भागी फौरन अपनी मॉ के पास
मॉ की ऑखें  भीग  गई  थीं आज मिला है मॉ को खास ।

देखो कभी निराश न होना आशा का दामन थामे रखना
जितना भी हो घोर- अ‍ॅधेरा मन का दिया जलाए रखना ।

4 comments:

  1. बहुत मर्मस्पर्शी और उत्कृष्ट प्रस्तुति...सदैव की तरह एक प्रेरक रचना..

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  2. बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !!

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  3. देखो कभी निराश न होना आशा का दामन थामे रखना
    जितना भी हो घोर- अ‍ॅधेरा मन का दिया जलाए रखना ।

    इस आशा और विश्वास की तो सबको जरूरत है...बधाई !

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  4. सकारात्मक सन्देश देती रचना...सुन्दर प्रस्तुति...

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