Sunday 15 March 2015

कल्हण का काश्मीर

कल्हण के कश्मीर का केशर कितना सुंदर कितना सुखकर
' राजतरंगिणी ' की तरंग भी सब कुछ कहती है चुप रह कर ।

' मैं  तो  कालजयी - रचना  हूँ  कोई  मुझे  भूल नहीं सकता
अद्भुत - निधि  हूँ  मैं  पूर्वज की हर कोई अभिनन्दन करता ।

पहल - गॉव  की  बात  बताऊँ आओ  अब  वहॉ  घुमा लाऊँ
जाफरीन  नामक  लडकी  है  उस  बच्ची  की  बात - बताऊँ ।

देख  नहीं  सकती  है  बच्ची  पर  करती  है  मन्त्र -उच्चार
वैदिक - मंत्र  याद  हैं  उसको  वेद -  ऋचा  से  करती  प्यार ।

ऑखें  सुन्दर  हैं  दृष्टि  नहीं  है  पर  बडे  ध्यान से सुनती है
जो  भी  एक - बार  सुनती  है उसको  फिर मन में गुनती है ।

फिर  हू - ब - हू उसे  दोहराती अचरज  करते  हैं  सब  लोग
जाफरीन  है  गार्गी  जैसी  जीवन का  करती सत - उपयोग ।

सत्य - नारायण  की  पूजा  हो  या  हो  वैभव - लक्ष्मी पूजा
यज्ञ - होम  हो जन्म - दिवस  हो  ज़ाफरीन  करवाती  पूजा ।

ज़ाफरीन  है  श्रेष्ठ  - पुरोहित  वह  सुन्दर  पूजा - करवाती
दान - दक्षिणा  जो  मिलती  है अम्मी  के हाथों में पकडाती ।

घर  का  खर्च  निकल  जाता  है  पर अम्मी करती  है फिक्र
कैसे  हो  निकाह  बच्ची  का  जब  ज़ाफरीन का होता ज़िक्र ।

काल - चक्र  चलता  रहता  है  करता  नहीं  कभी - विश्राम
दिन  के  बाद  रात आती  है  समय - चक्र  चलता अविराम ।

ज़ाफरीन अब बडी  हो गई पर अम्मी अब  हो  गई  हैं पस्त
जस -  पडोस  में  ही  रहता  है  ज़ाफरीन  का  वह  है  दोस्त ।

दोनों  का  व्यवहार  देख  कर  लगता  है  वे  सहज  नहीं  हैं
पता  नहीं  क्या  हुआ  है  इन्हें  कुछ  शुभ है जो हुआ सही है ।

पर अम्मी  सब  समझ  गई हैं वे  पहुँची  हैं  जस के घर पर
उसकी  मॉ  से  बात  हुई है शुभ शुभ हुआ  है जस के घर पर ।

धूम - धाम  से  ब्याह  हो  गया  सब ने आशीर्वाद  दिया  है
' एक  दूजे  के  लिए  बने  हो ' सब  ने  उन से  यही  कहा  है ।

2 comments:

  1. जैसे जाफरीन का शुभ हुआ वैसे सभी का हो

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  2. जाफरीन का भविष्य सुखद हो !

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